23 दिसंबर 2022 की सुबह 9.00 बजे से लेकर 24 दिसंबर 2022 की रात्रि 11.00 तक आजाद भारत में गुर्जरों का ऐतिहासिक आयोजन *गुर्जर महोत्सव 2022 दिल्ली*
*गुर्जर महोत्सव 2022,दिल्ली*
एक ऐसा आयोजन जिसमे एक देश के 12 प्रांतों के लाखों गर्वीले गुर्जर हरियाणा प्रदेश के जिला फरीदाबाद की पवित्र पावन भूमि सूरज कुंड के विशाल मैदान में आयोजित भव्य आयोजन में पंहुचकर अपनी गौरवशाली संस्कृति अपनी सभ्यता और परंपराओं की झलक के साक्षी बनेंगे।
*गुर्जर महोत्सव 2022, दिल्ली*
एक ऐसा आयोजन जिसमे अनेकता में एकता का संगम होगा,जहाँ काश्मीर से कन्या कुमारी तक के गुर्जरों की संस्कृति, परंपरा, भाषा, खानपान, वेशभूषा, व लोक-कला की अद्भुत झलक होगी।
*गुर्जर महोत्सव 2022, दिल्ली*
एक ऐसा आयोजन जिसमे
गुर्जर समाज के इतिहास, अध्यात्म, पराक्रम, बलिदान से जुडी उपलब्धियों की झलक देखने को मिलेगी।
*गुर्जर महोत्सव 2022, दिल्ली*
एक ऐसा आयोजन जिसमे माँ भारती की अस्मिता और गौरव की रक्षा के लिए गुर्जर समाज के रणबाकुरों के बलिदान और पराक्रम के प्रमाण देखने को मिलेंगे।
*गुर्जर महोत्सव 2022, दिल्ली*
एक ऐसा आयोजन जिसमे विभिन्न क्षेत्रों कला, संस्कृति, राजनीति, जनसेवा, उद्यम-व्यापार से लेकर साहित्य-लेखन, खेल-जगत, राजकीय सेवाओं में उल्लेखनीय योगदान देने वाली हस्तियों से रुबरु होंगे।
*गुर्जर महोत्सव 2022, दिल्ली*
एक ऐसा आयोजन जिसमे
गांव देहात की पगडंडियो,शहर की संकरी गलियों से निकल देशभर में अपनी प्रतिभा के दम पर समाज का नाम रोशन करने वाली प्रतिभाएं एक साथ मंच साझा करेंगी।
*गुर्जर महोत्सव 2022, दिल्ली*
एक ऐसा आयोजन जो वृहद गुर्जर समाज का दर्पण बन समाज की सकारात्मक, रचनात्मक छवि को प्रदर्शित करेगा जो देश की उन्नति में सहायक है।
*गुर्जर महोत्सव 2022, दिल्ली*
एक ऐसा आयोजन जिसमे
समाज के उस पक्ष को दिखाया जायेगा जो कहीं लिखा नहीं गया जिसे किसी फिल्म या छायाचित्र में दर्शाया नहीं गया और न ही किसी मंच पर बताया गया।
*गुर्जर महोत्सव 2022, दिल्ली*
एक ऐसा आयोजन जिसमे
कश्मीर के मुस्लिम गुर्जरों की देशभक्ति से लेकर रंगीले राजस्थान के वीर गुर्जरों के पराक्रम और समर्पण का बखान होगा।
*गुर्जर महोत्सव 2022, दिल्ली*
एक ऐसा आयोजन जिसमे
अध्यात्म के शिखर पर विराजमान समाज के आराध्य श्री देवनारायण भगवान से लेकर धर्म और आस्था के केंद्र पुष्कर सरीखे आस्था केंद्रों से समाज का संबंध रेखांकित होगा।
*गुर्जर महोत्सव 2022, दिल्ली*
एक ऐसा आयोजन जिसमे
देश में वीरता और पराक्रम के पर्याय सर्वोच्च वीरता पुरुस्कारों से अलंकृत गुर्जर समाज के जांबाज शहीदों की शहादत पर प्रकाश डाला जाएगा।
*गुर्जर महोत्सव 2022, दिल्ली*
एक ऐसा आयोजन जो
हमें देश के हर हिस्से में विद्यमान हमारी विरासत,सांस्कृतिक धरोहर और उनसे जुडी गाथाओं से रुबरु होने का अवसर देगा।
*गुर्जर महोत्सव 2022, दिल्ली*
एक ऐसा आयोजन जिसमे
नये भारत के निर्माण में योगदान देने वाले उन गुर्जरों, सामाजिक संगठनों और उनकी संस्थाओं को पटल पर लाया जाएगा जो देश की आने वाली पीढीयों के लिए सुदृढ़ बुनियाद बनाने का काम कर रही है।
*गुर्जर महोत्सव 2022, दिल्ली*
एक ऐसा आयोजन जिसमे
कुंठित एवं दूषित मानसिकता के चलते गुर्जर समाज की छवि का नकारात्मक प्रस्तुतिकरण करने वालों को करारा जवाब होगा जो समाज की *इमेज बिल्डिंग* के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगा।
*गुर्जर महोत्सव 2022, दिल्ली*
एक ऐसा आयोजन जो
समाज के भिन्न हल्कों में समाज की ताकत समाज की खोई हुई पहचान पुनः स्थापित करने का काम करेगा।
*गुर्जर महोत्सव 2022, दिल्ली*
एक ऐसा आयोजन जिसमे
एक छोर के गुर्जर देश के दूसरे छोर के गुर्जरों से रुबरु होंगे जहाँ यह कहावत चरितार्थ होगी की *सौ कोस के गुर्जरों की एक माँ होती है*
*गुर्जर महोत्सव 2022, दिल्ली*
एक ऐसा आयोजन जो किसी
व्यक्ति, संगठन या दल विशेष का नहीं बल्कि शुद्ध सामाजिक बुद्धिजीवी साथियों के दिमाग की उपज है जो अपने नि:स्वार्थ भाव से समाज के सहयोग से समाज के लिए कुछ अलग करने का जज्बा रखते है।
जी हाँ....ये बीजारोपण किया जा रहा है जो एक दिन वट वृक्ष का रुप लेगा।
इसके लिए ऐसे सामाजिक योद्धाओ को हृदय नमन एवं आभार।
History
इतिहास
प्राचीन इतिहास के जानकारों के अनुसार गूजर मध्य एशिया के कॉकेशस क्षेत्र ( अभी के आर्मेनिया और जॉर्जिया) से आए थे लेकिन इसी इलाक़े से आए आर्यों से अलग थे.
कुछ इतिहासकार इन्हें हूणों का वंशज भी मानते हैं.
भारत में आने के बाद कई वर्षों तक ये योद्धा रहे और छठी सदी के बाद ये सत्ता पर भी क़ाबिज़ होने लगे. सातवीं से 12 वीं सदी में गूजर कई जगह सत्ता में थे.
गुर्जर-प्रतिहार वंश की सत्ता कन्नौज से लेकर बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात तक फैली थी.
मिहिरभोज को गुर्जर-प्रतिहार वंश का बड़ा शासक माना जाता है और इनकी लड़ाई बिहार के पाल वंश और महाराष्ट्र के राष्ट्रकूट शासकों से होती रहती थी.
12वीं सदी के बाद प्रतिहार वंश का पतन होना शुरू हुआ और ये कई हिस्सों में बँट गए.
गूजर समुदाय से अलग हुए सोलंकी, प्रतिहार और तोमर जातियाँ प्रभावशाली हो गईं और राजपूतों के साथ मिलने लगीं.
अन्य गूजर कबीलों में बदलने लगे और उन्होंने खेती और पशुपालन का काम अपनाया.
ये गूजर राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में फैले हुए हैं.
इतिहासकार कहते हैं कि विभिन्न राज्यों के गूजरों की शक्ल सूरत में भी फ़र्क दिखता है.
राजस्थान में इनका काफ़ी सम्मान है और इनकी तुलना जाटों या मीणा समुदाय से एक हद तक की जा सकती है.
उत्तर प्रदेश, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में रहने वाले गूजरों की स्थिति थोड़ी अलग है जहां हिंदू और मुसलमान दोनों ही गूजर देखे जा सकते हैं जबकि राजस्थान में सारे गूजर हिंदू हैं.
मध्य प्रदेश में चंबल के जंगलों में गूजर डाकूओं के गिरोह सामने आए हैं.
समाजशास्त्रियों के अनुसार हिंदू वर्ण व्यवस्था में इन्हें क्षत्रिय वर्ग में रखा जा सकता है लेकिन जाति के आधार पर ये राजपूतों से पिछड़े माने जाते हैं.
पाकिस्तान में गुजरावालां, फैसलाबाद और लाहौर के आसपास इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है.
भारत और पाकिस्तान में गूजर समुदाय के लोग ऊँचे ओहदे पर भी पहुँच हैं. इनमें पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति फ़ज़ल इलाही चौधरी और कांग्रेस के दिवंगत नेता राजेश पायलट शामिल हैं.